जीवन एक मंच
जीवन इक मंच है ,इस दुनिया का।
जिसका हर किरदार ,निराला है।।
जब गैर भी ,अपने हो जाते।
अपनों में गैर ,बन जाता है।।
हंसमुख चेहरा है, लिए पात्र।
दिल में हर दर्द ,छिपाता है।।
रो-रो कर ,दुनिया को लूटे।
इन चतुर जीव का ,बजता डंका है।।
खिलखिलाता उन्मुक्त ,पवन सा मुख।
कभी तन्हाई से ,भरा नजर आता है।।
कभी कामयाबी की मंजिल ,चढ़ता दर्प।
वह इंसा ,दरिद्र पर हीनदृष्टि दिखलाता है।।
कभी लाखों की ,भीड़ में इंसा।
अकेला ,तन्हा नजर आता है।।
कुछ भी पाने की ,लालच में।
बहुत कुछ ,कुर्बान कर जाता है।।
--गीता सिंह
खुर्जा, उत्तर प्रदेश
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