प्रकृति तेरी अजब कहानी
प्रकृति तेरी अजब कहानी,
कभी सूखा, कभी बाढ़ का पानी।
खुश होती तो ,खिल जाती है,
बनके फूल, कभी वनमाली ।
चिड़िया चहके ,दादुर बोले,
पपीहे की कूक ,लगे प्यारी।
टप -टप बरसे बरखा रानी,
मन मृदंग खिले फुलवारी।
कोयल कूके ,मयूरा नाचे,
बागों में, दिखती हरियाली।
दुख होता तो ,गुस्सा होती,
कर देती दुनिया में पानी।
देख प्रकोप ,डर जाता है मन,
जंगलों की आग का, कहर बरपानी।
फिर भी क्यों ना ,समझा मानव,
प्रकृति अपने हाथों से हैं संवारनी।
--गीता सिंह
उत्तर प्रदेश
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