अनुभूति
अनुभूति तुझसे मिलने की,
जब हो तुझसे साक्षात्कार।
कह ना सके मन कैसे लगे,
मिले परम संतोष अपार।।
अनुभूति तेरे सौंदर्य की,
दर्श कर पलक पर लगे विराम,
नाम सुना पर मिला नहीं तू,
क्योंकि तू तो है निराकार।।
अनुभूति मेरे मन की सोचूं,
मिलूं तुझसे जीवन में एक बार।
नई किरण तू, ज्योतिपुंज तू,
तेरा मिलना देखे सारा संसार।
अनुभूति आत्मा की तुझसे,
कह दूं तू मुझमें मैं तुझमे।
आत्मा परमात्मा से मिलकर,
तू करा दे भवसागर से पार।।
अनुभूति तुझे पाने की सोचूं,
मिलेगा कितना सुख अपार,
राग द्वेष सब पीछे छूटे,
रह गया केवल विशुद्ध भाव।
अनुभूति तेरे मेरे प्रेम की,
प्रेम में बह जाए सारा ताप,
मैं हूं नर और तू नारायण,
तेरा अंश तुझी में मिल जाए।।
जैसी मिले भक्त भगवान,
जैसे बसे हो तुझ में प्राण।।
--गीता सिंह
खुर्जा, उत्तर प्रदेश
Comments
Post a Comment