राधा पुकारे कान्हा कान्हा
कदम्ब के पेड़ के नीचे, खड़े बंसी बजाते हो।
तुम्हारी राधा रानी भी, वहीं पर दौड़ी आती है।
पुकारे राधा ओ कृष्णा, मुझे ऐसे ना तरसाओ।
तुम्हारी मुरली की धुन सुन, ये गैया दौड़ी आती हैं।
पल पल निहारे आंखों से, ये आंसू क्यों बहाते हो,
जपत तेरा नाम ओ कान्हा, यह राधा दौड़ी आती है।
अधर पर धर के मुरली को, मुझे तुम क्यों चिढ़ाते हो,
बसा लो मन में ओ कान्हा, यह राधा प्राण देती है।
कदम्ब के पेड़ के नीचे, खड़े बंसी बजाते हो,
तुम्हारी राधा रानी भी, वहीं पर दौड़ी आती है।
सारी गोपियों के संग,जब तुम रास रचाते हो।
तुम्हारी राधा के मन में,जलन के भाव आते हैं।
तुम्हारे ज्ञान के आगे, यह राधा मूक रहती है।
परंतु प्रेम ऊपर है, यह राधा जान जाती है।।
--गीता सिंह
खुर्जा, उत्तर प्रदेश
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