राह दिखाती कृष्ण की गीता


आज के इस मुसीबत भरे कोरोना काल में विशेष संयम और धैर्य की आवश्यकता है। अपने मूल्यों पर स्थिर रहना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। जीविकोपार्जन की रफ़्तार धीमी हो गई है। खर्चे बढ़ गए हैं। बचत नाम मात्र रह गई है, जो कि सबसे ज्यादा जरूरी है। ऐसे में व्यक्ति को शांत चित्त रहना केवल गीता के ज्ञान से ही संभव है। सत्य के पथ पर चलना, कर्म योगी बनकर जीना, आसान नहीं। जीवन के अंधकार में जब कुछ दिखाई ना दे तब कृष्ण जी की गीता के ज्ञान का प्रकाश ही हमें दृढ़ प्रतिज्ञ बना सकता है।

ऐसी कठिन परिस्थितियों में जिसका मन वश में है, वही शुद्ध अंतःकरण वाला है। संपूर्ण प्राणियों का आत्म-स्वरूप-परमात्मा ही जिसकी आत्मा है, ऐसा कर्म योगी विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को स्थिर रखता है। तथा इस सांसारिकता में लिप्त नहीं होता।

अति की चाह न करके, संतुष्टि का भाव निहित होना चाहिए और जो ज्यादा है उसे गरीबों में बांट देना चाहिए। जिससे ऐसे समय में सभी जीव मनुष्य अपना जीवन यापन कर सकें।

जिस समय सारी पृथ्वी पर विध्वंस और हाहाकार हो, कहीं भूकंप तो कहीं से जलते वन, कहीं बाढ़ कहीं सूखा, ऊपर से कोरोना जैसी महामारी, ऐसे में व्यक्ति अंतर्मन में शांत चित्त रहें यही उसके लिए लाभकारी है।

यह महामारी की परिस्थितियां हमारी परीक्षा ले रही हैं। आज मनुष्य अपनी संस्कृति, सत्व, शुद्धता, परोपकारता, शाकाहार, यज्ञ व तप सब भूल गया है। उसे अपनी पावन पुण्य की भूमि की धरोहर की ओर मोड़ रही है महामारी।
पाश्चात्य शैली अपनाने से हमारा जीवन नष्ट हो रहा था। अंततः हम अपनी सात्विकता, सकारात्मकता तथा आध्यात्मिकता की ओर लौट रहे हैं।

 

--गीता सिंह
उत्तर प्रदेश

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