हो गई धन्य धन्य
जीवन में ऐसे आए कान्हा,
हो गई धन्य धन्य
मेरे मन में ऐसे छाए कान्हा,
हो गई धन्य धन्य
बाल छवि तुमरी ,अति सोनी,
लागी मेरे मन को,
पलना में ऐसे झूले ,मैं तो
हो गई धन्य धन्य।।
मोर मुकुट शीश पे साजे,
मकराकृत कानन कुंडल,
अधरों पे मुरली बजाए ,मैं तो,
हो गई धन्य धन्य।।
गोप ग्वाल संग रास रचाए,
गैया को भी रिझाए,
माखन की ,करके चोरी बालमन,
हो गई धन्य धन्य।।
सुबह शाम ,मैं भोग लगाऊँ,
चरण वंदना करती जाऊँ ,
मेरे बाल -गोपाल ,बिहारी मैं तो
हो गई धन्य धन्य।।
--गीता सिंह
खुर्जा, उत्तर प्रदेश
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