यह कैसा स्वीडन


जहां हर कोई जाना चाहे, अपनी दुनिया जहां बसा ना चाहे, वह खूबसूरत शांति प्रिय देश स्वीडन है ।खूबसूरत वादियों से ढका सुंदर देश ,दुनिया में अपनी अलग ही पहचान बना चुका था ।हम सभी यही सोचते थे कि स्वीडन एक ऐसा देश है जहां सुंदरता के साथ साथ सुंदर मन के व्यक्ति भी हैं। लड़ाई झगड़ा कम और शांति ज्यादा रहती है। विभिन्न धर्मों के लोग आपस में मिल जुल कर रहते हैं। हम भारतवासी बस यही सोचते फिर ऐसे देश में हम क्यों नहीं पैदा हुए। परंतु यह क्या? यहां भी ऐसे ही लोग हैं, गलतफहमी थी कि वह देश अच्छा है ,वह देश बुरा ।परंतु देश अच्छा या बुरा नहीं होता, लोग तय करते हैं कि वहां किस प्रकार से रहन-सहन है और देश कैसा है।

दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा मुसलमानों की पवित्र पुस्तक जला देने से स्वीडन का शहर माल्मो दंगाइयों से दहक उठा ।जिस शांति का परचम उन्होंने दुनिया में फैला रखा था, वह अब कहीं नहीं दिख रहा।लोग आग लगा रहे हैं, बसे, गाड़ियां फूंक रहे हैं, जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। शांति से रहने वार्लों की सहनशक्ति क्या खत्म हो गई? मिलकर वार्तालाप से भी तो मामला सुलझ सकता था।

जब तक व्यक्ति अपना -पराया नहीं छोड़ेगा तब तक कहीं भी शांति स्थापित नहीं होगी ।प्रत्येक व्यक्ति को अपने हित से ऊपर परिवार, समाज और देश से बारे में सोचना चाहिए ।जब हम एक ही शक्ति से प्राप्त जीव हैं, उसी परमात्मा की संतान है तो फिर इसमें तेरा और मेरा क्या? देश चाहे स्वीडन हो या भारत हो, प्रत्येक स्थान पर वे व्यक्ति भी रहते हैं जो सबको बराबर समझते हैं ,और शांति का मूल्य भी।।

गीता सिंह

उत्तर प्रदेश

Comments

Popular posts from this blog

एकांत, सुख या दुःख

गांधीजी के तीन बंदर

अगर पिज़्ज़ा बर्गर बोलते...