मेरा गांव, मेरा शहर
*मेरा गांव मेरा शहर*
'गाँव में भारत की आत्मा बसती है'
सही कहा है गांधी जी ने।
मेरा गाँव या मेरा शहर, दोनों के अपने अपने तर्क हैं। जीविका चलाने के लिए अब बहुसंख्यक व्यक्ति शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। बेरोजगारी से भटकते हुए लोग बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर भाग रहे हैं। आज की आपाधापी की जिंदगी में प्रत्येक व्यक्ति शहर जाकर अधिक से अधिक धन कमाकर भौतिक सुख सुविधाओं की ओर आकर्षित हो रहा है। यह कहने में कोई दो राय नहीं कि गाँव की अपेक्षा शहरों में बड़े-बड़े शिक्षा के संस्थान, उच्च कोटि के बाजार और योग्य कुशल चिकित्सक हैं जिनके कारण व्यक्ति अपना जीवन शहरों में व्यतीत कर रहा है।
परंतु गाँव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। गाँव की ताजा हवा, हरियाली, खेत खलिहान बहुत ही आकर्षित करते हैं। गाँव में फल, दूध, सब्जी प्रत्येक खाद्यान्न अन्य सभी कुछ शुद्ध मिलता है। वहाँ के नदी, तालाब अपनी और लुभाते हैं। गांव के लोग शहरों की अपेक्षा बड़ी बीमारियों से भी बचे रहते हैं। गाँव की प्रकृति मन मोह लेती है।
मेरे विचार से हमें गाँवों को और विकसित बनाकर गाँव में ही निवास करना चाहिए। कृषि में नई तकनीक लाकर अच्छी और ज्यादा कीमत की फसलें प्राप्त करनी चाहिए। छोटे-छोटे उद्योग विकसित करने चाहिए। अब तो सरकार भी लघु- उद्योगों के लिए बहुत प्रयास कर रही है। आज की बदली बढ़ती जनसंख्या से सभी के पास संसाधनों की कमी होती जा रही है। हमें देश की उन्नति के लिए प्रत्येक नागरिक को ही है कदम उठाना चाहिए।
*प्रकृति* के समीप रहेंगे तो सभी सुखी और शांति पूर्वक रहेंगे। हमारे गाँव देश के हृदय हैं। हमें पर्यावरण की रक्षा कर प्रत्येक पल गाँव की स्थिति को बेहतर बनाना चाहिए।।
गीता सिंह
खुर्जा उत्तर प्रदेश
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