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संग्रह की होड़

        मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति होती है संग्रह करने की। बालपन से वृद्धावस्था तक मनुष्य संग्रह करता आ रहा है। बचपन में खिलौने संग्रह करना, बाद में जीवनयापन करने हेतु भोजन संग्रह करना, धन संचय करना इत्यादि। आवश्यकता अनुसार संग्रह करना उचित है।       परंतु 'संग्रह की होड़' करना अनुचित है। संग्रह की होड़ करने से अति की महत्वाकांक्षा जन्म लेती है। अति हर चीज की बुरी होती है। संग्रह की होड़ में स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रवृत्ति विनाश को जन्म देती है। अधिक के मोह में इंसान लालच के दलदल में फंस जाता है और फिर वह अनैतिक कर्म करने लगता है। फिर वह कमजोर की आत्मा तक को कुचल कर आगे बढ़ने में भी गुरेज नहीं करता। अति की चाहत में उस मनुष्य की प्रवृत्ति राक्षसी हो जाती है, फिर वह गरीबों का शोषण करने लगता है। अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता उसे। अति विलासिता में जीवन व्यतीत कर स्वयं को सबसे ऊपर समझने लगता है।      आज कोरोना काल में जो हमें देखने को मिल रहा है वह सब *संग्रह की होड़* ही है। जो निंदनीय है इस महामारी काल में जहाँ एक ओर  सभी  स्वास्थ्य और जीवन की  मंगल कामना कर रहे हैं, वहीं

नारी

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विषय -नारी (गजल) *उम्र के हर दौर में मकसद बनाया करती है*  नारी तू नारी है, क्यूँ गर्व नहीं करती है उम्र के हर दौर में मकसद बनाया करती है तेरे हाथों की लकीरों में बसी है दुनिया तेरे हर रूप पर कुदरत भी नाज करती है तेरी मासूमियत पर लोग फिदा होते हैं पर तेरे हाल मजबूर निगाहें बयां करती है तू नदिया है झील ना बन जाना कभी तेरी हिम्मत जो हौसले बुलंद करती है न बनना कभी कमजोर कैदियों सी तू तू आसमां में पंछी सी चहका करती है नाम रोशन किया तूने दो कुटुम्बो का  तेरी खुशबू से फिजाएं भी महका करती है  सच बताना आपको कैसी लगी ये मेरी गजल दिल से दिल में पहुँचे, गीता ये दुआ करती है।। गीता सिंह

मेरा गांव, मेरा शहर

      *मेरा गांव मेरा  शहर*    'गाँव में भारत की आत्मा बसती है'      सही कहा है गांधी जी ने।    मेरा गाँव या मेरा शहर,  दोनों के अपने अपने तर्क हैं। जीविका चलाने के लिए अब बहुसंख्यक व्यक्ति शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। बेरोजगारी से भटकते हुए लोग बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर भाग रहे हैं। आज की आपाधापी की जिंदगी में प्रत्येक व्यक्ति शहर जाकर अधिक से अधिक धन कमाकर भौतिक  सुख सुविधाओं की ओर आकर्षित हो रहा है। यह कहने में कोई दो राय नहीं कि गाँव की अपेक्षा शहरों में बड़े-बड़े शिक्षा के संस्थान, उच्च कोटि के बाजार और योग्य कुशल चिकित्सक हैं जिनके कारण व्यक्ति अपना जीवन शहरों में व्यतीत कर रहा है।       परंतु गाँव का अपना एक विशिष्ट महत्व है। गाँव की ताजा हवा, हरियाली, खेत खलिहान बहुत ही आकर्षित करते हैं। गाँव में फल, दूध, सब्जी प्रत्येक खाद्यान्न  अन्य सभी कुछ शुद्ध मिलता है। वहाँ के नदी, तालाब अपनी और लुभाते हैं। गांव के लोग शहरों की अपेक्षा बड़ी बीमारियों से भी बचे रहते हैं। गाँव की प्रकृति मन मोह लेती है।      मेरे विचार से हमें गाँवों  को और विकसित बनाकर गाँव में ही निवास करना चा

मेरे जीवन साथी

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 मेरे जीवनसाथी,  हम  जैसे दीया और बाती।  एक सहारा देता उसको,  एक  उजाला  करता।  एक दूजे के दोनों पूरक,  कोई अकेला खुश न रहता।  कभी प्रेम, कभी नोकझोंक   हर  पल  होती  रहती।    मेरे जीवन साथी,  हम    जैसे दीया और बाती  वह रूठे तो उसे मनाऊं  मैं रूठी तो वही मनाए।  घर परिवार को ऐसे चलाते   जैसे  हो  सुंदर  उद्यान ।  फूल -फूल बगिया में महके  देखते बनकर दोनों माली।  मेरे  जीवन  साथी , हम  जैसे  दीया  और बाती।। स्वरचित, मौलिक  गीता सिंह  खुर्जा उत्तर प्रदेश

मेरे राम जय श्री राम

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मेरे राम जय श्री राम पाँच  सौ वर्ष की कड़ी प्रतीक्षा में,  शुभ दिन यह आया है। चौदह  नवंबर दीपोत्सव का, अवध में सुख क्षण आया है। अवध के सारे वासी को ,उन पर है अभिमान  मेरे राम ,जय श्री राम  वे सारे जग के भगवान ।। पाँच लाख इक्यावन हजार   दीप जलाए अयोध्या में, ऐसा अद्भुत ,अकल्पनीय  ऐतिहासिक क्षण आया है। मेरे देश और हिंदुत्व का ,आज उन्होंने  बढ़ाया मान  मेरे राम ,जय श्री राम  वे सारे जग की भगवान।। अपनी प्रजा को सब सुख दीने स्वयं के लिए कभी कुछ ना मांगे ।  त्याग भावना सिखाने आए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।  पल-पल लीला करते जाते ,मंद मंद मुस्काए राम  मेरे राम ,जय श्री राम  वे सारे जग के भगवान।। गीता सिंह खुर्जा, बुलन्दशहर  उत्तर प्रदेश

नारी तू आगे बढ़

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 तू आगे बढ़,तू आगे बढ़  तू डर मत,  तू छिप मत गर्व से कह,तू नारी है। देश की आधी आबादी है।  तू आगे बढ़ ,तू आगे बढ़।। तोड़ दे बेड़ियां ,मिटा दे फासले मुश्किलें तो आएंगी ,फिर भी  हिम्मत कर ,साहस कर  तू आगे बढ़ ,तू आगे बढ़।।  बड़े-बड़े तूफान आएं,  राह में कंकड़ पत्थर आएं, हौसले बुलंद कर ,तू रुक मत  तू आगे बढ़, तू आगे बढ़।।  तू छू ले आसमान,  भर ले ,अपनी उड़ान,  समेट ले जहान को  अपने आगोश में ,फिर  तू आगे बढ़ ,तू आगे बढ़।। तू निरंजना निरंतरा ,और  धीर गंभीर वसुंधरा, कोई भी रोके तुझे ,न बस कर  तू आगे बढ ,तू आगे बढ़।।  --गीता सिंह  खुर्जा उत्तर प्रदेश

अवध में राम आए हैं

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दीपों से भरी अयोध्या ,मनमोहक लगती है। वहां सियाराम आए हैं ,मेरे श्रीराम आए हैं।। पाँच लाख इक्यावन हजार , दिए जल गए। आभामय हुई अयोध्या, अवध के मानव तर गए।। ऐसा अद्भुत ,अकल्पनीय , ऐतिहासिक क्षण आया है । मेरे भारत देश का, हिंदुत्व उभर कर आया है।। पांच सौ वर्ष की कड़ी प्रतीक्षा में, ये क्षण आया है। अवध में राजाराम आए हैं, मेरे सरकार आए हैं।। ऐसा लग रहा है, जैसे त्रेता युग आ गया है। अवध के वासी झूमे नाचे ,रामराज आया है।। अनुभूति दीपोत्सव की, निशब्द कर देती है। शुभ दीपावली सभी को, मेरे श्रीराम आए हैं।।   — गीता सिंह खुर्जा ,उत्तर प्रदेश