संग्रह की होड़
मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति होती है संग्रह करने की। बालपन से वृद्धावस्था तक मनुष्य संग्रह करता आ रहा है। बचपन में खिलौने संग्रह करना, बाद में जीवनयापन करने हेतु भोजन संग्रह करना, धन संचय करना इत्यादि। आवश्यकता अनुसार संग्रह करना उचित है। परंतु 'संग्रह की होड़' करना अनुचित है। संग्रह की होड़ करने से अति की महत्वाकांक्षा जन्म लेती है। अति हर चीज की बुरी होती है। संग्रह की होड़ में स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रवृत्ति विनाश को जन्म देती है। अधिक के मोह में इंसान लालच के दलदल में फंस जाता है और फिर वह अनैतिक कर्म करने लगता है। फिर वह कमजोर की आत्मा तक को कुचल कर आगे बढ़ने में भी गुरेज नहीं करता। अति की चाहत में उस मनुष्य की प्रवृत्ति राक्षसी हो जाती है, फिर वह गरीबों का शोषण करने लगता है। अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता उसे। अति विलासिता में जीवन व्यतीत कर स्वयं को सबसे ऊपर समझने लगता है। आज कोरोना काल में जो हमें देखने को मिल रहा है वह सब *संग्रह की होड़* ही है। जो निंदनीय है इस महामारी काल में जहाँ एक ओर सभी स्वास्थ्य और जीवन की मंगल कामना कर रहे हैं, वहीं